Last updated on February 18th, 2025 at 12:42 am
क्या आप जानते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को खुश करने के लिए भारत ने अमेरिकी बॉर्बन व्हिस्की पर आयात शुल्क 150% से घटाकर 50% कर दिया है? लेकिन यह फैसला भारतीय शराब उद्योग को बुरी तरह भाया नहीं है! Taaza Jaankari पर जानिए क्यों भारतीय शराब कंपनियां सरकार के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं, और कैसे यह टैरिफ युद्ध भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की राह में बाधा बन सकता है।
क्या है पूरा मामला?
- टैरिफ कटौती: भारत ने बॉर्बन व्हिस्की समेत 28 अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क कम किए।
- मोदी-ट्रम्प मीटिंग: यह कदम प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा से ठीक पहले उठाया गया, ताकि द्विपक्षीय व्यापार समझौता (FTA) हो सके।
- उद्योग का गुस्सा: भारतीय शराब निर्माताओं का कहना है कि यह फैसला उन्हें नुकसान पहुंचाएगा।
भारतीय शराब उद्योग क्यों है नाराज? 3 बड़े कारण
- सस्ते आयात का खतरा: 50% ड्यूटी के बाद अमेरिकी बॉर्बन भारत में सस्ती होगी, जिससे घरेलू ब्रांड्स को मुकाबला करने में दिक्कत होगी।
- एक्साइज छूट का दोहरा झटका: राज्य सरकारें आयातित शराब पर एक्साइज ड्यूटी में छूट देती हैं, जिससे भारतीय उत्पाद और पिछड़ जाएंगे।
- वैश्विक बाजार में भेदभाव: भारतीय व्हिस्की UK जैसे देशों में 3 साल के मैच्योरेशन रूल की वजह से फंसती है, जबकि भारत की गर्म जलवायु में व्हिस्की जल्दी तैयार होती है।
CIABC की मांग: “सरकार सुनें उद्योग की आवाज!”
भारतीय मदिरा निर्माता संघ (CIABC) ने सरकार से ये मुख्य मांगें की हैं:
- आयात रोकने के उपाय: सस्ती विदेशी शराब की डंपिंग (बाजार में जबरदस्ती उतारने) को रोकने के लिए सख्त नियम।
- फेज्ड ड्यूटी कटौती: 150% से 50% तक का कटौती एकदम नहीं, बल्कि 10 साल में धीरे-धीरे करें।
- विदेशों में भारतीय उत्पादों को बढ़ावा: अमेरिका और यूरोप को भारतीय शराब पर लगे गैर-टैरिफ बैरियर्स (जैसे UK का 3 साल का नियम) हटाने के लिए दबाव बनाएं।
क्या है UK का 3 साल वाला नियम?
- मैच्योरेशन रूल: यूके में व्हिस्की को बेचने के लिए उसे कम से कम 3 साल पुराना होना चाहिए।
- भारत की दिक्कत: भारत की गर्मी में व्हिस्की जल्दी मैच्योर हो जाती है, लेकिन UK इस नियम को नहीं बदलता। नतीजा—भारतीय व्हिस्की यूके में नहीं बिक पाती।
ट्रम्प vs भारतीय उद्योग: किसकी जीत?
- अमेरिका का फायदा: बॉर्बन व्हिस्की और सेब जैसे उत्पादों को भारत में आसानी से बेचने का मौका।
- भारत की चुनौती: घरेलू उद्योग को बचाने के साथ-साथ अमेरिका से बेहतर व्यापार सौदे की उम्मीद।
- उपभोक्ता का सवाल: क्या भारतीय बाजार में अमेरिकी बॉर्बन सस्ती होगी? जवाब—हां, लेकिन इससे देशी ब्रांड्स के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी।
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निष्कर्ष: क्या सरकार संभालेगी उद्योग की बागडोर?
ट्रम्प के साथ व्यापार समझौते की राह में यह टैरिफ युद्ध एक बड़ी चुनौती है। सरकार को अंतरराष्ट्रीय रिश्तों और घरेलू उद्योग के बीच संतुलन बनाना होगा। CIABC की मांगें मानकर फेज्ड ड्यूटी कटौती और विदेशी बैरियर्स हटाने जैसे कदम इस समस्या का हल हो सकते हैं।