नमस्ते Taaza Jaankari परिवार! आज हम बात करेंगे टाटा समूह के चेयरमैन N Chandrasekaran के उन भावुक पलों की, जो उन्होंने हाल ही में दिवंगत रतन टाटा को याद करते हुए साझा किए। यह कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान की है जिसने संस्कार और सम्मान को सफलता से ऊपर रखा। चलिए, शुरू करते हैं!
“सर, आपको यह करने की ज़रूरत नहीं…” – चंद्रशेखरन की यादें
एक इवेंट के दौरान चंद्रशेखरन ने बताया कि रतन टाटा अपनी सेहत कमज़ोर होने के बावजूद उन्हें हमेशा व्यक्तिगत तौर पर रिसीव करते और विदा करते थे। चंद्रशेखरन के शब्दों में, “मैंने कहा, ‘सर, आप यह परेशानी न उठाएं,’ लेकिन उनका जवाब था – ‘यह मेरी आदत है।’ उनके लिए शिष्टाचार और इंसानियत सबसे बड़ी प्राथमिकता थी।”
यह घटना रतन टाटा के सादगी भरे व्यक्तित्व को दर्शाती है। वे दुनिया के सबसे बड़े बिज़नेस लीडर्स में शुमार थे, मगर अपने सहयोगियों के प्रति सम्मान और नम्रता उनकी पहचान थी।
रतन टाटा: वो शख्स जिसने भारत को ग्लोबल मैप पर लाया
रतन टाटा ने 1991 से 2012 तक टाटा समूह की कमान संभाली। इस दौरान उन्होंने कंपनी को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए:
- 2000 में टेटली टी का अधिग्रहण – भारत की पहली बड़ी इंटरनेशनल डील।
- 2007 में कोरस स्टील और 2008 में जगुआर-लैंड रोवर खरीदकर भारतीय उद्योग को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
- इंडिका और नैनो जैसी कारों के ज़रिए आम भारतीयों का सपना पूरा किया।
टाटा की यह सोच साफ थी – “इनोवेशन और जनता के विश्वास के बिना सफलता अधूरी है।”
सादगी और दानशीलता: रतन टाटा की विरासत
रतन टाटा ने कभी भी पैसों को अपनी पहचान नहीं बनने दिया। उनका जीवन इन सिद्धांतों पर टिका था:
- फिलैंथ्रोपी (दानशीलता): टाटा समूह के 66% शेयर चैरिटेबल ट्रस्ट्स के नाम हैं, जो शिक्षा और स्वास्थ्य पर काम करते हैं।
- युवाओं को मौका: उन्होंने कंपनी में युवा लीडर्स को आगे बढ़ाया, जिसमें चंद्रशेखरन भी शामिल हैं।
- स्टार्टअप्स का सपोर्ट: रिटायरमेंट के बाद उन्होंने पेटीएम, ओला इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों में निवेश कर भारतीय उद्यमिता को बढ़ावा दिया।
2008 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, मगर उनके लिए सबसे बड़ा अवॉर्ड लोगों का प्यार था।
रतन टाटा से जुड़ी वो बातें, जो हर नए लीडर को सीखनी चाहिए
चंद्रशेखरन की यादों ने कुछ अहम सबक दिए हैं:
- लीडरशिप में इंसानियत: टीम के प्रति सम्मान सफलता की नींव है।
- ज़मीन से जुड़े रहना: चाहे कितनी भी बड़ी कामयाबी मिल जाए, सादगी न छोड़ें।
- दूरदृष्टि: रतन टाटा ने 90 के दशक में ही ग्लोबल एक्सपेंशन की रणनीति बना ली थी।
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Taaza Jaankari परिवार के लिए संदेश
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– Taaza Jaankari