Masoom Sharma News: हरियाणा सरकार ने क्यों बैन किए इनके गाने? जानिए पूरा विवाद!

नमस्ते दोस्तों!
कैसे हो आप सब? आज हम लेकर आए हैं हरियाणवी म्यूज़िक इंडस्ट्री का एक गरमा-गरम टॉपिक। जी हाँ, बात हो रही है मशहूर सिंगर मसूम शर्मा(Masoom Sharma) के उन तीन गानों की, जिन्हें हरियाणा सरकार ने YouTube से हटवा दिया। क्या वाकई इन गानों में “गन कल्चर” है, या फिर ये कोई पर्सनल रंजिश का मामला है? चलिए, बिना समय गंवाए जानते हैं पूरी कहानी!


मसूम शर्मा कौन हैं? गाँव का वो लड़का जिसने बनाई देशभर में धूम!

मसूम शर्मा(Masoom Sharma) उम्र के 33वें पड़ाव पर हैं और हरियाणवी पॉप म्यूज़िक के चर्चित चेहरों में से एक। इन्होंने 2021 में जप नाम भोले का और 2 नंबरी जैसे गानों से लोगों का दिल जीता। 2022 में ट्यूशन बदमाशी का और भगत आदमी ने तो सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया। इनके गानों में हरियाणा की रूरल लाइफ, युवाओं के जज़्बात और कभी-कभी मस्ती भरी बदमाशी झलकती है।


क्यों हुआ गानों पर बैन? सरकार vs मसूम की ‘टक्कर’!

हरियाणा सरकार का कहना है कि मसूम(Masoom Sharma) के गाने “60 मुकदमे”“खटोआ” और “ट्यूशन बदमाशी का” युवाओं को गन कल्चर की तरफ़ प्रेरित करते हैं। लेकिन मसूम इस बात से बिलकुल इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते। उनका दावा है कि ये बैन सरकार के एक “उच्च अधिकारी” से पर्सनल दुश्मनी की वजह से लगाया गया है।

फेसबुक लाइव में मसूम(Masoom Sharma) ने कहा, “सर, मेरे गानों में तो बस युवाओं की ज़िंदगी की कहानी है। अगर गन दिखाने से बैन लगेगा, तो फिल्मों में हीरो का पिस्तौल लेकर डांस करना भी बंद करवाइए!” 


‘मुझे टारगेट किया जा रहा है!’ – मसूम का बड़ा आरोप

मसूम(Masoom Sharma) ने बताया कि सरकार ने सिर्फ़ उन्हें नहीं, बल्कि दूसरे हरियाणवी आर्टिस्ट्स जैसे नरेंद्र भगाना और अंकित बालियान के गाने भी हटवाए, ताकि ये न लगे कि सिर्फ़ वो टारगेट हैं। साथ ही, सूरजकुंड मेले में KD दानोदा के शो को कैंसिल करने का भी ज़िक्र किया।

उनका सवाल है – “जब लोक संगीत के नाम पर अश्लीलता फैलाने वालों पर एक्शन नहीं होता, तो मेरे गानों को ही क्यों उठाया जा रहा है?”


क्या हरियाणवी म्यूज़िक इंडस्ट्री को खतरा?

मसूम(Masoom Sharma) का मानना है कि ऐसे फैसले लंबे समय में हरियाणवी संगीत को नुकसान पहुँचाएंगे। उन्होंने कहा, “अगर हमारी आवाज़ दबाई गई, तो युवा पंजाबी म्यूज़िक की तरफ़ भागेंगे। हमारी संस्कृति पीछे रह जाएगी।”

वैसे, ये बहस नया नहीं है। पंजाब में भी गानों को लेकर ऐसे विवाद होते रहते हैं। पर सवाल ये है कि क्या कलाकार की आज़ादी और सामाजिक ज़िम्मेदारी के बीच बैलेंस कैसे बने?

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आपकी क्या राय है?

दोस्तों, अब आपको फैसला करना है:

  1. क्या गानो में गण कल्चर सही है या गलत ?
  2. या फिर कलाकारों को अपनी बात कहने की आज़ादी मिलनी चाहिए?
    कमेंट में बताइए!

और जानकारी चाहिए?

अगर आपको ये आर्टिकल पसंद आया, तो हमारी वेबसाइट Taaza Jaankari पर जाकर “हरियाणवी म्यूज़िक का सफर” और “पंजाब vs हरियाणा: संगीत की जंग” जैसे आर्टिकल्स भी पढ़ें!

(नोट : यह जानकारी internet  पर दी गई जानकारी के माध्यम से ली गई है।)

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